1971 में भारत ने पाकिस्तान को सैन्य रूप से पराजित कर बांग्लादेश को जन्म दिया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जब भारत पहला ऐसा देश बना जिसने बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी।
आज जब हम बलूचिस्तान की बात करते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि वह दौर अब बदल चुका है। वैश्विक राजनीति, कूटनीति और युद्ध की परिभाषाएं आज 1971 जैसी नहीं रहीं। अब युद्ध मैदान से ज़्यादा मन और विचारधाराओं में लड़े जाते हैं।
पाकिस्तान अब कश्मीर की आज़ादी की बात उतनी आक्रामकता से नहीं कर सकता, क्योंकि भारत ने वहां “कश्मीरियत”, “जम्हूरियत” और “इंसानियत” को पुनः स्थापित करने के प्रयास किए हैं। परंतु यह भी सच है कि चीन अब मणिपुर और अरुणाचल जैसे मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, जो भारत के लिए एक नई चुनौती है।
यदि भारत को पाकिस्तान को लेकर भविष्य में कोई रणनीतिक बढ़त बनानी है, तो हमें सैन्य ताकत से अधिक वैश्विक मंचों पर नैतिक और कूटनीतिक नेतृत्व दिखाना होगा। हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाना होगा कि पाकिस्तान की सेना, उसकी कठपुतली सरकार और आम जनता – तीनों अलग-अलग इकाइयाँ हैं।
भारत को अपने प्रयास इस दिशा में केंद्रित करने चाहिए कि वह पाकिस्तानी अवाम के दिल में जगह बनाए। यह कार्य असंभव नहीं है, क्योंकि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी नागरिक अपनी सरकार और सेना की नीतियों से असंतुष्ट हैं और भारत को एक शांति और विकास की दिशा में बढ़ते राष्ट्र के रूप में देखते हैं।
हमें यह संदेश स्पष्ट रूप से देना चाहिए कि भारत की कोई दुश्मनी पाकिस्तानी जनता से नहीं है, बल्कि वह उनके भ्रष्ट, अक्षम और दमनकारी शासकों से है। अगर हम पाकिस्तानी अवाम को एक वैकल्पिक भविष्य दिखा सकें – जैसे भारत ने “विकसित भारत 2047” का सपना संजोया है – वैसे ही उनके लिए “लोकतांत्रिक पाकिस्तान 2047” की कल्पना पेश कर सकें, तो यह एक बड़ी वैचारिक जीत हो सकती है।
भारत के पास आज एक सशक्त सूचना तंत्र है – एक ऐसा आईटी सेल, जो केवल चुनाव प्रचार नहीं, बल्कि नीतिगत संवाद, वैश्विक छवि निर्माण और जनमत तैयार करने की क्षमता रखता है। इस संरचना का उपयोग पाकिस्तानी अवाम को जोड़ने, संवाद स्थापित करने और उन्हें विश्वास में लेने के लिए किया जा सकता है।
और भारत केवल सपना दिखाने तक सीमित नहीं है – हमारे पास वह सामर्थ्य भी है कि हम दिखाए गए विजन को धरातल पर उतार सकें।
~कार्तिकेय चौरसिया
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