June 1, 2025

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तुझ को हिमालय धन्य हैं

मूर्धन्य है , जगमन्य है , तुझको  हिमालय धन्य है
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

वन वृक्ष की ये श्रंखला , जोगी जती सी सोहती
भू – वनस्पति सत्शिष्य सम , स्व -गुरु का मग  जोहती ,
जोग -रत बट देह पे , तरु -जटाएं अनन्य हैं,
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

जिस और दृष्टि फेरिये ,उस और कौतुक हेरिये ,
चित्रकारी के  कुशलतम कारगर को टेरिये ,
फिर भी न कुशलतम हिमालय से कारीगरी कोई अन्य है ,
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

शांति मनोहर  हर तरफ , फिर ध्वनि कोई होवती ,
ज्यों पिय-मिलन  जाती युवति ,स्व नूपुरों पर  मोहती ,
ऐसी अनेको नहर नदिया , निज -यात्रा में संलग्न है ,
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

पशु पक्षी सुनिपुण भाट सम, विरुदावली है गा  रहे ,
पुर पुरातन से भी पुरातन,इतिहास  वे सुना रहे ,
इतिहास के हैं साक्ष्य सब , तव देह पर जो चिन्ह हैं
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

वत्स-बिछुड़ी धेनु ज्यों गेह तन को धावती  ,
तैसे ही  छाया हिमालय की  घाटियों में आवती ,
छाया  की आयु दीर्घ ,आयु धुप की यहाँ निम्न है ,
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

शीतल पवन रणबांकुरे सी चहु दिशा में भागती ,
करती शिथिल सबको ,जिस -जिस  को पथ में पावती
ऐसी सुभट ,सुदृढ़ और वीर हिमालय की  सैन्य है ,
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

रात्रि सुबदन कामिनी की ,  मोहक -मनोहर है छटा ,
जिसका बदन मुक्ता -मणि ,हीरे -मोतियों से है पटा ,
हिमवान  की समालिंगिता , ऐसी प्रेयसी न अन्य है
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

अविचल , सुदृढ़ सर्वोपरि , तुंग चोटियां हिमवान की ,
ज्ञान ,त्याग ,विराग की ,धरोहर धवल  स्वाभिमान की,
इस देश की नदियां ,वन -ओ -उपवन , तेरे  ही सौजन्य है
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

मूर्धन्य है , जगमन्य है , तुझको  हिमालय धन्य है
तू सृष्टि से संपन्न है ,तुझको हिमालय धन्य है |

कविता के लेखक हैं-

*महिपाल सिंह गुर्जर*
प्रशिक्षु अधिकारी
भारतीय रेल यातायात सेवा

फोटो: महिपाल सिंह गुर्जर

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